मेरी कमसीन जवानी
उन दिनों मैं नई ताज़ी जवान हुई थी; पूरी तरह एडल्ट हो चुकी थी मैं! मेरा जिस्म एकदम जवान हो चुका था। मेरी जांघें मोटी हो गईं थीं, मेरे चूतड़ भी उभर आये थे, मेरी गांड भी बुर चोदी मटकने लगी थी और मेरे बूब्स भी बड़े बड़े हो गए थे। मेरी बाहों की गोलाई और मेरे कूल्हों के ठुमके सबको बड़े अच्छे लगने लगे थे। मैं हमेशा स्लीवलेस कपड़े पहनती थी। मैं थोड़ा चंचल स्वभाव की थी, शरारती थी और हंसी मजाक करने में बहुत तेज थी इसलिए मैं लोगों की नज़रों में चढ़ी हुई थी। हमारी गली मोहल्ले के लोग भी मुझे बुरी नीयत से देखने लगे थे पर हाथ लगाने से डरते थे क्योंकि मैं थोड़ा दबंग टाइप की थी। मेरी अम्मी जान का मुझ पर पहरा वैसा ही बना रहा, वह कम न हुआ था। उधर कॉलेज में मेरी कई लड़कियां दोस्त बन चुकी थीं और उनसे खूब खुल कर बातें होतीं थीं। अब जवान लड़कियां अगर बातें करेंगी तो सेक्स पर जरूर करेंगीं. इसलिए सब की सब भोसड़ी वाली लंड, बुर, चूत, भोसड़ा की बातें खुल कर करतीं थीं। इधर कुनबे की सभी हमउम्र लड़कियां मुझे लंड की, चूत की और चोदा चोदी की बातें खूब सुनाया करतीं थीं। मेरे कान में हर तरफ से लंड ही लंड की आवाज़ आने लगी थी। जहाँ देखो व...